Monday, March 19, 2012

दर्द का व्यापार

वो भी करना चाहता था व्यापार
सोच करूँ एक विचित्र व्यव्हार
उसे एक लत सी हो गई थी तब
चाहा था कुछ समाज का उद्धार
बिना सोचे कर दिया उसने बस
औरों का दर्द खरीदने का व्यापार
उसका अंदाज़ एकदम निराला था
खुद से उसे कोई था नहीं सरोकार
खरीदने को उसके पास सद्भाव था
जो बेचने वाले को नहीं था मंज़ूर
उसका एकाकी संघर्ष रहा जारी
चुप थे सब प्रबुद्ध जन व अख़बार
लोग कौतूहलवश साथ होने लगे
उसका बढ़ रहा था फिर व्यापार
दर्द बेचने वाले थे अब खिलाफ
उनका घट रहा था सब व्यापार
उन्होंने सौदा करना चाहा उससे
मगर वो नहीं था सौदे को तैयार
अगले दिन अकाल मौत की खबर
मुस्तैदी से छाप रहे थे सब अख़बार

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