वो भी करना चाहता था व्यापार
सोच करूँ एक विचित्र व्यव्हार
उसे एक लत सी हो गई थी तब
चाहा था कुछ समाज का उद्धार
बिना सोचे कर दिया उसने बस
औरों का दर्द खरीदने का व्यापार
उसका अंदाज़ एकदम निराला था
खुद से उसे कोई था नहीं सरोकार
खरीदने को उसके पास सद्भाव था
जो बेचने वाले को नहीं था मंज़ूर
उसका एकाकी संघर्ष रहा जारी
चुप थे सब प्रबुद्ध जन व अख़बार
लोग कौतूहलवश साथ होने लगे
उसका बढ़ रहा था फिर व्यापार
दर्द बेचने वाले थे अब खिलाफ
उनका घट रहा था सब व्यापार
उन्होंने सौदा करना चाहा उससे
मगर वो नहीं था सौदे को तैयार
अगले दिन अकाल मौत की खबर
मुस्तैदी से छाप रहे थे सब अख़बार
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