बचपन से उसे जीना बहुत पसन्द था
आकाँक्षाओं की फेहरिश्त लम्बी ही थी
जीवन की उथल पुथल में फँसकर भी
मनोबल की दशा बहुत अच्छी ही थी
किसी अनकही पहेली के उत्तर ढूंढते
उसकी ज़िन्दगी की सांझ ढल गई थी
उसके लिए जीवन कल भी पहेली था
जीने की चाहत आज भी पहेली ही थी
उसे दिन और उजालों से प्यार सा था
अब काली रात लम्बी लगने लगी थी
उसने फिर भी उत्साह बनाए रखा था
उसे तो बस अब सुबह की प्रतीक्षा थी
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