Tuesday, March 13, 2012

अनकही पहेली

बचपन से उसे जीना बहुत पसन्द था
आकाँक्षाओं की फेहरिश्त लम्बी ही थी
जीवन की उथल पुथल में फँसकर भी
मनोबल की दशा बहुत अच्छी ही थी
किसी अनकही पहेली के उत्तर ढूंढते
उसकी ज़िन्दगी की सांझ ढल गई थी
उसके लिए जीवन कल भी पहेली था
जीने की चाहत आज भी पहेली ही थी
उसे दिन और उजालों से प्यार सा था
अब काली रात लम्बी लगने लगी थी
उसने फिर भी उत्साह बनाए रखा था
उसे तो बस अब सुबह की प्रतीक्षा थी

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