Thursday, March 8, 2012

तपिश

इतनी सी तमन्ना काफी थी मेरे लिए
वो बस किसी तरह समझ पाते मुझे
न वो समझ पाए न हम समझा पाए
बस तमन्ना तमन्ना ही रह गई थी
सर्दी की धूप को गर्मी की लू समझे
पर तपिश तो इसकी आनंददायी थी
देखें कब सावन का मौसम आयेगा
बरसात तो तभी से लगने लगी थी
जिसे हम बस मौसमी हवा समझे
वही तो वसंत बहार की बयार थी
हम ही उस सुरभि को न जान पाए
हवाओं में तो खुशबू बिखरी पड़ी थी

1 comment:

babanpandey said...

वाह भाई... पढ़कर फागुन ... और महक गया