Saturday, April 12, 2014

प्रेम की गली

सुबह ये कुछ धुली धुली
ये हवा भी है महक चली
जागी है उम्मीद फिर नई
मुस्कुराई सी मन की कली

अरमान फिर बहक रहे
अंदाज़ भी महक रहे
चाहत की ओट से चली
डगर ये कुछ भली भली

रौशनी से धुल गया समां
मौसम ये बस रवाँ रवाँ
लेके मोहब्बत का कारवाँ
बयार फिर है ये चली

गुलों के रंग हैं नए
गगन भी साफ़ साफ़ है
गुलज़ार हैं चमन यहाँ
बहार हर गली गली

दिल है मन से पूछता
ये कौन सी हवा चली
मुस्कुराहटों के राज़ क्या
क्या प्रेम की गली मिली


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