Wednesday, April 30, 2014

नज़र का असर

जाने क्यों नहीं दीखते तुम्हें
रंग हैं अब भी सब मौसम में
फ़िज़ा का मस्त आलम है
बहारों के ख़ूबसूरत मौसम में
पुरवाइयाँ रोज़ चलती हैं
अब भी गर्मियों की रात में
सर्द हवाओं के गर्म एहसास हैं
हर बार सर्दियों के मौसम में
वो भीगी-भीगी रौशनी भी है
आज भी बरसात के मौसम में
बहुत कुछ बाक़ी है हर तरफ़
आज भी दुनियां के मौसम में
बस नज़र का असर भर है
ज़ज़्बात ग़ुम हैं हर मौसम में

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