वक़्त के रुखसत के ख़त आ गए
आवाज़ करने वाले मौन हो गए
खामोशियों के सुर गहरे हो गए
ज़िन्दगी के पल थमे लगते गए
मग़र अपनी रफ़्तार चलते गए
रफ्ता रफ्ता दिन कम होते गए
हमारी बेचैनियों को बढ़ाते गए
कल से कल तक दो दिन हो गए
आज़ के पल जाने कहाँ खो गए
हमसफ़र जुदा राह को चल दिए
हम अपने रहगुजर में चल दिए
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