Thursday, April 24, 2014

मन में क्या

किसी रोज़ हम भी
कह देंगे इस जग से
मलिन मन से सही
लेकिन अपनी बात
स्पष्ट शब्दों में ही
हमने रेत को सींचा
ये किसी ने नहीं देखा
हम ने देखा है ये सब
या रेत को मालूम है
मालूम है हम को भी
समंदर नहीं है हम
पर सूखे दरिया नहीं
ये भी हमें भान है
कृतघ्नता दूर रखी
अपना कर्तव्य ज्ञान है
बहुत नहीं माँगा हम ने
पर बहुत कुछ दिया है
जीना जानते हैं हम
इसीलिए नहीं मानते
जीवन कोई सजा है
तुम प्रतीक्षा करना
हमारे कह देने की
मन में क्या रखा है

No comments: