वैमनस्य बढ़ाने से बनते हैं
लोगों के विचार भी यहाँ
औरों की बातों से बनते हैं
प्रगति की चर्चा नहीं
हर बात पर विवाद हैं
अब मुल्क़ की नहीं
नेताओं की अँधभक्ति है
राष्ट्र-हित की बात अब
दल-हित की बात है
किसी की बात सुनना
अब बर्दाश्त से बाहर है
लोगों का मिज़ाज़ ही
मानो बदल गया है
उनकी चेतना जड़-वत है
एक दिन के राज़ा हैं
और बस दूसरे ही दिन
स्वयं समझ जाते हैं
और कुछ नहीं, बस
मौसम बदल गया है
आसमान-ज़मीन वही है
'बादल' नए आ गए हैं
जो अब धूप के मित्र हैं
बरसना नहीं जानते
लेकिन फिर भी
वाष्प उड़ा ले जाते हैं
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