जितनी सुलझाना चाही
सुलझ नहीं पाती
और उलझने लगती है
कभी कभी
सब भूल जाना चाहती हूँ
लेकिन जितना भूलना चाहूँ
भूल नहीं पाती
कभी कभी
जीवन के रास्ते समझना
इतना सरल नहीं है
एहसास होता है मुझे भी
कभी कभी
उलझा छोड़ देना भी
हल नहीं लगता
इसलिए भी सुलझाती हूँ
कभी कभी
जीवन बेरंग बेसुरा लगता है
ये जानती हूँ मैं भी
पर संजीदा हो जाती हूँ
कभी कभी
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