Sunday, April 6, 2014

ओस की बूँद

ओस की बूँद सी हैं
ज़िन्दगी की खुशियाँ
अँधेरे में आ जाती हैं
न जाने कब चुपचाप
बिना कोई दस्तक दिए
बस चमकती दिखती हैं
सुबह के उजाले में
तेज़ धूप की गर्मी में
फिर गायब हो जाती हैं
वापस आ जाने के लिए
इनका एहसास भी
घर से निकल कर है
घर के अँधेरे में नहीं
मन के उजाले में
इनकी चमक बढ़ कर
दोगुनी हो जाती है
उजालों के परावर्तन से

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