आहिस्ता-आहिस्ता होने लगे
वो मुझसे कुछ दूर-दूर इधर
ठीक उसी तरह ज्यों हुए थे
करीब मेरे चन्द बरस पहले
तब और अब में आ गया
फर्क ज़माने भर का मानो
और हमारे ज़ज्बातों में भी
कुछ-कुछ अपनी ही वजह से
काफी कुछ गैरों की वजह से
हमारे मोहब्बत के हसीं पल
तुनक मिजाजी के सर हो गए
हमारी ही खुद की ज़िन्दगी में
कोई और अब घर कर गए
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