बस एक फीकी सी हंसी
उसके चेहरे पर मौजूद थी
जो जर्जर हो चला था
वक़्त से काफी पहले ही
उसकी मुस्कराहट में भी
नैराश्य भाव ज्यादा था
उसके कांपते और सूखे होंठ
एक सवालिया हकीकत से
उसकी बदहाली बयाँ करते
उसे किसी से अपेक्षा न थी
वो ज़िन्दगी से हार चुकी थी
उसे मालूम था वो अकेली नहीं
इसके ज़िम्मेदार कई लोग थे
उसके मन में आज भी शायद
इसीलिए कड़वाहट भरी थी
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