Thursday, May 19, 2011

कड़वाहट

बस एक फीकी सी हंसी
उसके चेहरे पर मौजूद थी
जो जर्जर हो चला था
वक़्त से काफी पहले ही
उसकी मुस्कराहट में भी
नैराश्य भाव ज्यादा था
उसके कांपते और सूखे होंठ
एक सवालिया हकीकत से
उसकी बदहाली बयाँ करते
उसे किसी से अपेक्षा न थी
वो ज़िन्दगी से हार चुकी थी
उसे मालूम था वो अकेली नहीं
इसके ज़िम्मेदार कई लोग थे
उसके मन में आज भी शायद
इसीलिए कड़वाहट भरी थी

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