Monday, May 16, 2011

हो न हो

क्या मालूम आज फिर अचानक
कोई ख़्वाब सुनहरा शायद आए
और मेरी दिन भर की परेशानी
खुशगवार लम्हों में बदल जाए
मैं बेताबी से ही इंतजार करूँगा
क्या जाने किस घड़ी आ जाए
नींद का आना भी अब ज़रूरी है
कहीं रात पलकों में न कट जाए
ख़्वाब जाने किस वक़्त आएगा
शायद पलक झपकते आ जाए
न आया तो भी इंतजार रहेगा
आज हो न हो कल आ जाए

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