Saturday, May 28, 2011

चश्म-ए-पुरनम

कितनी शिद्दत से संभाला मैंने
फिर भी वो दूर हो गया मुझसे
नजर के सामने तो वो ज़रूर था
और था मेरे दिल के करीब भी
फिर भी ज़िन्दगी उदास सी थी
आँखों में एक अजीब प्यास थी
हाँ! कुछ संजीदा मैं ज़रूर थी
हौसला नहीं खोया था तब भी
झाँका था जो उस रोज़ मैंने
चश्म-ए-पुरनम के कोने से भी
मेरा आफताब वहीँ था मौजूद
वहीँ पर था मेरा आसमान भी

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