Monday, May 23, 2011

अधर

अधरों में प्यास लिए
मैं प्यासा ही बैठा था
अधरों में शब्द दबाये
मैं कुंठा में बैठा था
अधरों की व्याकुलता को
मैं तो समझ रहा था
किन्तु अधरों का संकोच
कुछ करने नहीं देता था
खामोश अधर के कम्पन में
शब्द प्रस्फुटित होना चाहते थे
अधरों का अधरों में मानो
मूक रहने का निर्णय था
अधरों के इस मूकपन से
मेरा संसार बदल गया था

1 comment:

अनुभूति said...

खामोश अधर के कम्पन में
शब्द प्रस्फुटित होना चाहते थे
अधरों का अधरों में मानो
मूक रहने का निर्णय था
अधरों के इस मूकपन से
मेरा संसार बदल गया था ...
पन्त जी अधरों के इस मूक पण से प्रस्फुट होता है ह्रदय के कोमल भावों को लेखनी के माध्यम से अभिव्यक्त करने का ऐसा सुन्दर संसार....जय हो आपकी...