मैं और मेरे सारे ज़ज्बात तब
कैसी मायूसी में पिघल रहे थे
मेरी हसरतें दरकिनार कर जब
तुम बड़ी आसानी से चल दिए थे
उन सब नायाब लम्हों को जब
तुम्हारे साथ समेटना चाहता था
मैं अपने आप में ही बस सिर्फ
खामोश सिमट कर रह गया था
तब तुम जान बूझकर ही मुझे
मेरे सहारे गुजर को छोड़ गए थे
मैं टूटा कतई नहीं था और फिर
मैंने अपना ही भरोसा कर लिया
महज इत्तेफाक़न ही सही तुमने
मुझसे मेरा तवारुख करा दिया
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