हाँ देखो अलबेला ही हूँ मैं
किसी राह से चाह न मुझको
मैं अपनी ही राह बनाता हूँ
कौन बना पायेगा अपना सा
मैं बस एक स्वयं सा बनता हूँ
सफ़र सभी सा मेरा भी पर
डगर नई मैं चुनता हूँ
दुनियां की रस्मों से हटकर
मैं नई रस्म पर चलता हूँ
मेरे तो साथी सारा जग हैं
नहीं सिर्फ कुछ चुनता हूँ
हर दिन प्रतिपल मैं भी लेकिन
स्वप्न नए नित बुनता हूँ
अलग नहीं कुछ तुम सा ही मैं
लेकिन हाँ अलबेला हूँ मैं
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