कुछ राज जो संजोये थे तुमने
दफन कर तुम्हारे ही सीने में
आज भी वो महसूस करते हैं
तुम्हारे गाढ़े हुए वो ज़ज्बात
तुम्हें तो ये भी एहसास नहीं
तुम आज भी उन्हें संजोये हो
लोगों का क्या वो इधर-उधर
संयोग और नियति के बंधन
जीवन प्रसंग के पल भर हैं
बस ज़ज्बात तुम्हारे ही अपने
हों क्यों न दफ़न सीने में हैं
1 comment:
बहुत खूब उदय जी ...... संयोग और नियति के बंधन
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