Monday, May 16, 2011

प्रीत

प्रीत की रीत में ऐसी उलझी
भूल चली थी मैं खुद को
जो भी ख्वाब दिखे प्रीत में
पाया भी न खोया उनको
जिसकी प्रीत में था सब खोया
पाया भी न उतना उनको
अपनी राह के थे सब राही
कोई साथ मिला न मुझको
एकाकी सा था मन ये मेरा
कोई राह न सूझी थी मुझको
खुद से करने प्रीत जो निकली
सब कुछ मिल गया मुझको

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