सब के मन मानो हर्षा गए
वसन्त में खिले-खिले से
ग्रीष्म की गर्मी में झुलसे
दरख्तों की सूखी डाल पर
फिर पल्लवित हो गए हैं
सब हरे-हरे रँग में पत्ते
नवजीवन के प्रतीक से
अब हर तरफ हरियाली है
और कैसी छटा निराली है
सूरज का मिज़ाज़ नरम है
सारा जहाँ नहाया हुआ है
किसानों के मन पुलकित हैं
आशाएँ फिर नई सँजोये हैं
हवायें सरसराती इतराती हैं
खुशियों के नव गीत गाती हैं
प्रकृति की गोद भर गई है
जीवन में ललक बढ़ गई है
भीगे मौसम में सब तरफ
बरसात की अलसाई रुत है
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