Saturday, July 5, 2014

हर हाल में

हम नहीं अंधेरों से डरते हैं
उनका भी अपना काम है
वक़्त से रात ज़रूर आएगी
फिर सुबह खुद ही आएगी
यूँ भी अब कहाँ फ़र्क़ होता है
कब रात है या फिर दिन है
ग़म की घड़ी जब भी आएगी
ख़ुशी भी साथ गुनगुनायेगी
रास्ते ऊबड़-खाबड़ तो क्या
अपना सफ़र तय करना है
क्या कहाँ किसको क्या मिला
हमको नहीं इन बातों से सिला
हम तो ख़ुद को क्या हासिल
ये भी हिसाब नहीं रखते हैं
बस अपने कर्तव्य-पथ पर
हर हाल में चलते जा रहे हैं


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