Tuesday, July 29, 2014

फ़ितरत बदल न पाओगे

मैं भी तो इसी गगन में हूँ
आज़माने का जतन करना
सूरज बन झुलसाने की
तुम कोशिश करते रहना
मैं ठण्डा कर फैला दूँगा
उसी तुम्हारी रौशनी को
तुम छुप जाओगे कहीं और
देखेंगे लोग तब मेरी ओर
सोचेंगे कितनी शीतलता है
चाँदनी में मेरी बस
उनका क्या, बिसरा देंगे
ये रौशनी तुम्हारी ही है
बस कह देंगे वो तो
सूरज नहीं चाँद बेहतर है
सितारे भी साथ होंगे मेरे
मैं कैसा इतराता फिरूँगा
सारे बाराती होंगे मेरे
तुम जल-जल आ जाओगे
सबको दिन भर झुलसाओगे
अपने ही रूप दिखाओगे
लोग फिर करेंगे याद मुझे
करेंगे मेरा इन्तज़ार
अपनी भी मेरी भी उनकी भी
फ़ितरत तो बदल न पाओगे

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