कुछ खुद से कुछ हालात से तंग हैं
ज़माने ने बनाया भिखारी तो क्या
हसरतें तो आज भी शहंशाह की हैं
मुफ़लिस भी हैं तो किसी को क्या
शौक़-ओ-शान हमारी अमीरी की हैं
दर-दर की ठोकरें खाने को मज़बूर
लेकिन दिल में सोच बादशाह की हैं
जब जो भी मिला गले लगा लिया
मोहब्बतें कौन सा कहीं और की हैं
चार दिन उधार के हम भी लाए हैं
ख़्वाहिशें होती कब किसी ग़ैर की हैं
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