यूँ अकारण ही मुझे
तुमने बहुत कुछ कहा
मैं भी बस सुनता रहा
बिना अपराध भाव के
तुम्हारा हक़ समझ कर
लेकिन फिर भी ज़रुर
एक टीस थी दिल में
शायद समझे नहीं तुम
शब्दार्थ को समझते
मेरा मंतव्य एवं
शब्दों का प्रयोग भी
अपेक्षा रखता हूँ
अब मैं तुमसे भी
मेरा हक़ समझ पाओगे
तुम भी कभी-कभी
No comments:
Post a Comment