कुछ धूमिल सी
स्मृति की रेखायें
मेरे बचपन की
जाने क्यों लेकिन
सब बिसरी सी हैं
प्रायः वो बातें
मेरे यौवन की
बातें कुछ शायद
इस जग की
मेरे कर्तव्यों की
इधर भारी सी हैं
फिर भी जीवंत
सदा कण-कण में
जीवन की गाथा
बस प्यारी सी हैं
अब ढलती वयस्
इसके अपने आयाम
जो भी स्मृति होंगी
सब अपनी ही हैं
No comments:
Post a Comment