Tuesday, July 8, 2014

प्रतीक्षा है

फिर चुपके से आके
कोई हवा का झोंका
मेरे कानों में कह गया
फुसफुसाते से स्वर में
क्यों बदहवास से
यूँ उदास बैठे हो
बहारें आने वाली हैं
आँख कान खोल रखो
कहीं ऐसा न हो कि
तुम ऊँघते रह जाओ
और वक़्त गुजर जाये
फिर सरसराते हुए
मुझे जग कर चल दी
अब मुझे भी प्रतीक्षा है
बदले हुए मौसम की


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