आज़ हम कल की बात कल पर टालते गए
हर बात की अपनी उम्र है हर किसी के लिए
अंदाज़ा करना मुश्क़िल है ये सब किसलिए
हम थे बादलों से बारिश की उम्मीद लगाये
बादल छाये और बिन बरसे यूँ ही चले गए
फिर आसमाँ की तरफ देखेंगे नज़रें गढ़ाए
बादल से होगी उम्मीद टकटकी लगाये हुए
क्या मालूम यूँ कब कौन कहाँ मिल जाए
ज़िन्दगी तभी तक जब तक उम्मीद जिए
No comments:
Post a Comment