चाहतें की थीं ज़माने भर की
कोई क़िस्मत के नाम पर
कभी बस हालात के चलते
दामन के क़रीब से गुजर गया
या आकर झोली से निकल गया
कभी राहत के तौर पर इधर
अनचाहा कुछ और मिल गया
कभी हैरतअंगेज़ कर के मुझे
जाने क्या-क्या न देता गया
मुक़द्दर की बात और है यहाँ
जीने की राह भी कई और हैं
हर दुःख भी मेरा अज़ीज़ था
यूँ ख़ुशियाँ लुटाता चला गया
मेरी चाहतों की डगर पर यहाँ
नई मंज़िलें दिखाता चला गया
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