Tuesday, June 3, 2014

क़हक़शाँ

भूले बिसरे पलों की यादें हैं
ज़िन्दगी यूँ ही रवाँ होती है
ज़िन्दगी जब क़रीब आती है
कुछ तो बेबसी बयाँ होती है
मदहोश ये क़ायनात सोती है
होश हमको भी कहाँ होती है
उनकी बातें ही याद आती हैं
ये रात जब भी जवाँ होती है
यूँ अकेले भी बसर होती है
हर लम्हा क़हक़शाँ होती है
जब अचानक ये ठहर जाती है
उम्र भी कब मेहरबाँ होती है


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