ज़िन्दगी यूँ ही रवाँ होती है
ज़िन्दगी जब क़रीब आती है
कुछ तो बेबसी बयाँ होती है
मदहोश ये क़ायनात सोती है
होश हमको भी कहाँ होती है
उनकी बातें ही याद आती हैं
ये रात जब भी जवाँ होती है
यूँ अकेले भी बसर होती है
हर लम्हा क़हक़शाँ होती है
जब अचानक ये ठहर जाती है
उम्र भी कब मेहरबाँ होती है
No comments:
Post a Comment