Thursday, June 19, 2014

रफ़्तार ज़िन्दगी की

रफ्ता-रफ्ता
गुजरते वक़्त में
रफ़्तार ज़िन्दगी की
बस बढ़ती ही गई
कैसी अज़ीब बात है
बनाये जो आशियाने
उनकी दीवार एक एक
वक़्त के साथ चलते
बस सिमटती गई
रोज़ नए तवारुख हैं
हर वक़्त ही
लेकिन फिर भी यहाँ
आशनाई घटती गई
उम्र के लेकिन
घटने के साथ-साथ
ज़िन्दगी की चाहत
बढ़ती ही गई

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