फिर कुछ जुमले कहते जाओ तुम
फूलों के हों बिखरे रंग कई जिधर
कोई बाग़ मुझे ऐसा दिखलाओ तुम
बादल की ग़रज़ नहीं है कोई भाती
कुछ बूँद सही सावन बरसाओ तुम
बारिश की बूँदों में भीगी-भीगी हो
यूँ मदमस्त छटा दिखलाओ तुम
बस लगें झूमने ज्यों दोनों हम-तुम
साथी गीत तो कोई ऐसा गाओ तुम
तन-मन में होगी सुखद कोई झंकार
आज राग कोई ऐसा छेड़ जाओ तुम
कह दो उन रूठी खुशियों से तुम मेरी
बस अन्तर्मन तक छाते जाओ तुम
1 comment:
प्रसंशनीय कविता.
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