हमारी वो पहली मुलाक़ात
तुम्हारे लाल-हरे रुमाल के साथ
रेलवे स्टेशन पर
हमारा पारिवारिक सम्बन्ध
फिर वो निरंतर
मुलाक़ातों के सिलसिले
बातचीत के कई रंग
परस्पर प्रेम भाव
हमारे बीच की चर्चाओं में
हमारे वाद-विवाद
मैंने अनुभूति की थी
पिछली बार कुछ
हमारी आखिरी मुलाक़ात में
उसी रेलवे स्टेशन पर
तुम चले गए
लेकिन यादों का समंदर
और न जाने क्या-क्या
मुझे चिरस्मरण दे गए
शाश्वत शांति में अब
तुम शांत हो गए
बस नमन और श्रद्धांजलि
शब्द समाप्त हो गए
मुलाक़ातें ज़ारी रहेंगी
स्मृति पटल पर हमेशा
1 comment:
My father-in-law and my dear 'intellectual friend' ..who left his heavenly abode in June 2014 at the age of 86....
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