Monday, June 30, 2014

वो दिन आएगा


वही अंदाज़ वही मिज़ाज़ नहीं बदला यहाँ कुछ भी
बड़े ज़ालिम हैं मुल्क़ में और बहुत मज़लूम भी बाक़ी
ज़माना चूम लता है क़दम सुर्खरू लोगों के
जानना नहीं चाहता कितने सर कटे मज़लूमों के
सुर्खरू जानते गुर हैं जानकार भी अनजान बनने के
कोई मज़लूम तक नहीं सुनता दुखड़े कभी मज़लूमों के
सितमगर ढूँढ़ लेते हैं सितम के हर तरीकों को
उनके हैं रास्ते अपने उन्हीं के वास्ते घर कानूनों के
उन्हीं के चलते हैं चलते यहाँ घर भी वक़ीलों के
बरसती दौलतें उनकी छुपातीं हर राज़ हैं उनके
उमड़े जाते हैं हुज़ूम नज़र भर देखने को लोगों के
उन्हीं की है जम्हूरियत उन्हीं की सुनते हैं सब लोग
वो जो कह दें न शक कोई मिलेगा क्या यूँ शक कर के
जब माने उनको ही हैं हक़ीम वो सब बन्दे हैं उनके
कभी वो दिन भी आएगा नहीं होंगे ये सब उनके
धर्म, कानून सबके आगे होंगे बराबर सब जुर्म उनके


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