Monday, June 23, 2014

पल-पल मुस्कराहट

रेलगाड़ी में सहयात्री वह भी थी
सादगी और सुंदरता की प्रतिमूर्ति
शायद कोई राजस्थानी बाला थी
उसके ताज़ा महावर लगे हाथों से
वह बार-बार स्वचित्र लेकर
बगल के बच्चे से मिलकर देखती
अपने खुशनुमा अंदाज़ के साथ
मोनालिसा की सी ही मोहक
अपनी मुस्कराहट के बीच में
बार-बार बरबस प्रकट होती हुई
उसकी खिलखिलाती भाव-भंगिमा
मासूम आँखों से सब तरफ ही
उसकी विचरती नज़रों का क्रम
बैंगनी कुर्त और धानी सलवार
दोनों मिश्रित रंगों का दुपट्टा भी
शालीन से उस पर बखूबी फबते थे
करीने से पहने हुए उसके वस्त्र
सौंदर्य को चार चाँद लगा रहे थे
उसे देख यही आभास होता था
ज़िन्दगी और क्या यही तो है
पल-पल बिंदास मुस्कुराते हुए
अपने पर्यावरण एवं परिवेश में
अपनी स्मृतियों के बीच में
नए-नए अंदाज़ में मुस्कुराते रहना

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