अकस्मात् ही
सोचता हूँ
कि पूछ लूँ तुमसे
उन प्रश्नों के उत्तर
जो नहीं सूझते मुझ को
हमेशा की तरह
अब मेरी परेशानियाँ
मुझ अकेले की हैं
पहले यदा कदा तुमसे
बाँट लिया करता था
और तुम भी
उन्हें अपना समझ
अपने अनुभव से
सीख दे देते थे
जैसे उन गुजरे दिनों में
बचपन से युवावस्था तक
अब लोग नहीं समझते
मेरी परेशानी को अपनी
बाँटने का प्रश्न ही नहीं
इसीलिए अब भी
मरीचिका में
तुम्हारे सामीप्य की
तुम को तलाशता हूँ
प्रतिवर्ती क्रिया की तरह !
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