ज़बाब नहीं सूझता था हमें उस रोज़
किसी ने पूछा हमसे कहाँ मंज़िल है
लेकिन कोशिश थी ज़बाब ढूंढने की
हम तलाशते ही रहे कहाँ मंज़िल है
मंज़िल की तलाश में भटकते लोग
कुछ नहीं जानते कि कहाँ मंज़िल है
हर तरफ चौराहे यहाँ मिलेंगे ज़रूर
मगर हर राह की अपनी मंज़िल है
अब गुजर गए हैं पुराने तौर तरीक़े
जहाँ भी रास्ता मिले वहीँ मंज़िल है
रास्ते ख़त्म हो जाते हैं जिस रोज़
ये समझ लेना होगा यही मंज़िल है
2 comments:
wah dil ko chhu gayi ye panktiya
शुक्रिया लोहिया सिंह जी :)
Post a Comment