Tuesday, June 17, 2014

चौराहे


ज़बाब नहीं सूझता था हमें उस रोज़
किसी ने पूछा हमसे कहाँ मंज़िल है
लेकिन कोशिश थी ज़बाब ढूंढने की
हम तलाशते ही रहे कहाँ मंज़िल है
मंज़िल की तलाश में भटकते लोग
कुछ नहीं जानते कि कहाँ मंज़िल है
हर तरफ चौराहे यहाँ मिलेंगे ज़रूर
मगर हर राह की अपनी मंज़िल है
अब गुजर गए हैं पुराने तौर तरीक़े
जहाँ भी रास्ता मिले वहीँ मंज़िल है
रास्ते ख़त्म हो जाते हैं जिस रोज़
ये समझ लेना होगा यही मंज़िल है


2 comments:

Unknown said...

wah dil ko chhu gayi ye panktiya

Udaya said...

शुक्रिया लोहिया सिंह जी :)