मेरे हिस्से की रौशनी का कर सौदा दरख़्तों से
कहने को तो था वो भी कोई चाँद भी पूनम का
अमावस सा अँधेरा था पास उसकी बेरुखी से
जुगनुओं और सितारों की रौशनी ही क़ाफी थी
मेरे बदले उसने की थी दोस्ती उन दरख्तों से
पूछना चाहा था मैंने उससे दुश्मनी का सबब
जाने क्यों छुप के क्या बोला वो उन बादलों से
वज़ह कोई नहीं मालूम मुझे जाने क्यों फिर भी
मैं भी हुआ था बेपरवाह उस चाँद की बेरुखी से
सितारों और जुगनुओं से कर ली दोस्ती मैंने
वो न पूनम से थे और नहीं कभी अमावस से
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