तारों भरी रात ने मुझसे पूछा
ये चाँद कहाँ ग़ायब हुआ आज
मैंने कहा जो है उसमें रहो ख़ुश
इसमें कौन फर्क पड़ता है तुम्हें
आज गया होगा कहीं और माँगने
रौशनी की तलाश में ही भटकने
ताकि तुम्हें दिखा कर इतरा सके
वही अपनी उधार की ही रौशनी
तारों के प्रकाश में भी मस्त रहो
दूर सही तुम्हारे साथ हमेशा हैं
जितना पास है उनका अपना है
रौशनी में रंग भी कौन तुम्हारे हैं
कम रौशनी में ही तुम्हारी पूछ है
No comments:
Post a Comment