संवेदना के तीन अक्षर रहे
बस पहला अक्षर खो देने से
इतना कुछ यहाँ बदल गया
सिर्फ़ एक अक्षर न होने से
पाषाण से हो गए औरों की
वेदना का आभास न होने से
मानो हमें क्या फ़र्क़ होना है
औरों पर अन्याय भी होने से
क्या अभीष्ट समाप्त हो गया
ये सब स्वयं पर न होने से
यूँ तो क्या बदल जाता है
किसी के संवेदना जताने से
लेकिन बहुत फ़र्क़ पड़ता है
किसी के साथ साथ खड़े होने से
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