Sunday, April 21, 2013

जीवन का सत्य

बिलकुल स्वप्नवत
कई इच्छाओं और
आकाँक्षाओं के बीच
भ्रमित मकड़जाल में
फँसा रहा था मैं भी
एकदम तुम्हारी तरह
अब कहाँ रह गया मैं
कहाँ रह गई आकांक्षाएँ
किन्तु ये भी तो सत्य है
कोई अंत नहीं है यहाँ
तृष्णा और पिपाशा का
बस ध्रुव सत्य एक है
वर्तमान व जिजीविषा का
अब यही स्वप्न है मेरा
यही इच्छा आकांक्षा भी
यही जीवन का सत्य भी

No comments: