Thursday, April 11, 2013

अप्रत्याशित

ये अपनापन यहाँ
अब पहले सा कहाँ
अब भी मिलता है
लेकिन अब फ़र्क़ है
अपना समझ नहीं
'अपना' सोच बयाँ
सब कुछ अपने लिए
सोच भी अपनत्व भी
कौन जाने कब कौन
अपने आ जाए यहाँ
अपने अब गिने चुने
जाओ अपने न भी हों
फिर भी लोग अब
ये समझेंगे कहाँ
'परायों' से अपनापन
'अपनों' से परायापन
प्रायः आज भी
मिल जाता है यहाँ
'अपने' से 'अपनों' की
बनती दूरियों एवं
नजदीकियों के आयाम
उलट-पुलट और
उलझ से गए हैं
अप्रत्याशित सही
यही दस्तूर है यहाँ
हर ओर हर वक़्त
भागते तलाशते हम
अपना अपना जहाँ

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