Saturday, April 27, 2013

ख़ुशबू माटी की

चलते चलते यहाँ
प्रायः दूर दूर सुदूर
मैं अनुभवजन्य
और स्मृतियों में
विवेचना करता हूँ
विशाल जगत की
पर खो जाता हूँ मैं
अनुभितियों में प्रायः
अपने बाल्यकाल
और युवावस्था की
मेरे बाल-सखा एवं
पारिवारिक जनों की
सलाल ह्रदय और
स्वछन्द और सरल
अविस्मरणीय पलों की
सहृदय व स्नेहशील
गाँव के सीधे-साधे
आत्मीयजनों की
विकसित शहर के
तथाकथिक सभ्य
और आधुनिक लोग
अलौकिक नैसर्गिक
कमी नहीं पाते कभी
भौतिक सुख संसर्ग की
किन्तु वंचित रखेंगे
अतुल्य अनुभूति उस
अनन्त आनन्द की
तन मन में समाई
ख़ुशबू उस माटी की

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