Monday, April 29, 2013
सजा अपराध की
कोई वहशी दरिन्दे से लूट अस्मत औरतों की तुम
मर्दानगी का यों अपनी हरदम ही इज़हार करते हो
शरम से सर झुके सबके हैं देख हैवानियत ऐसी
अपनी बेटियों सी बच्चियों का बलात्कार करते हो
जना और प्यार से पाला परोसा माँ ने तुम्हें होगा
उसी की आबरू क्यों यों हमेशा शर्मसार करते हो
सितम घर में ज़ुल्म बाहर यूँ अहसानफ़रोशी से
ज़माने भर के क्यों इतने तुम अत्याचार करते हो
तुम्हारी भी बहन होंगी और शायद बेटियाँ होंगी
किसी की ज़िन्दगी फिर यूँ क्यों बरबाद करते हो
नवाज़ा था मोहब्बत से दुआओं से सभी ने पर
उन्हीं को बददुआओं को बेबस लाचार करते हो
बहन बेटी और माँ अब सभी की बस दुआ होगी
सजा अपराध की हो यूँ मौत का इंतजार करते हो
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